एक नये कार्यकर्ताने मुझे पूछा आप हमेशा चमचा लोगोके बारे में क्यों लिखते हो....? या फिर चमचा लोग इस शब्दका प्रयोग बार बार क्यों करते हो ? आखिर ये चमचा लोग है कौन ? ऐसे सवाल मेरे उस कार्यकर्ता भाई ने मुझे
पूछे ? मैंने मेरे उस मासूम को अपने हिसाब से सम्जानेकी कोशिश तो की । मगर उसका समाधान नहीं कर सका । अन्तमे मैंने उसे मान्यवर साहब कांशीरामजी इनके द्वारा लिखी हुई किताब .......
" चमचा युग " अंग्रेजी में "चमचा एज " यह किताब मैने उसे पढ़ने के लिए कहा ।और वह चला गया । फिर दो दिन बाद मुझे रास्ते में मिला । तब उसने बताया मुझे किताब पढने के लिए मिली नहीं । खैर मै तो उसे जरुर पढूगा । लेकिन कमसे कम मुझे थोडा समजाइए ...!
तब मैंने उसे कहा आपने कभी आपके रसोईघर(किचन रूम) में कभी किस तरह सब्जी बनाते यह देखा है क्या ? उसने कहा हाँ मैंने देखा है । लेकिन इतना गौर नहीं किया कभी ...!
तो मैंने कहा भाई बगैर चमचे की कोई भी सब्जी, तरकारी नहीं बनती है । लेकिन जिस चमचे के बगैर वह सब्जी नहीं बन सकी, उस चमचे को कभी यह पता नहीं चलता के सब्जी कैसे बनी
है ? वैसेही हमारे में कुछ चमचे ऐसे है ... जिन चमचो के वजहसे हमारा हित शत्रु तो सब कुछ हासिल कर लेता है। मगर काम पूरा होने के बाद उसे कोईभी कुछ नहीं पूछता है । ऐसे चमचा लोगोकी वजहसे हमारा मोवमेंट का सही काम नहीं होता है । हर समय बहुजन समाजके हर नेत्रुत्व के संघर्ष को रोकने के लिए हमारा दुश्मन उस नेतृत्व के सामने उसी के समाजके कुछ चमचोको तैयार करते है । और उसके उस काम को रोकनेकी कोशिश की जाती है ।ऐसे चमचे हर वक्त होते है । इसलिए मान्यवर साहब कांशीरामजी को यह किताब लिखनी पड़ी ।
चमचा लोगोकी वजहसे आज हमारी यह हालात हो गई है । इस लिए ।मैंने उसे समजाया उसे मैंने एक सन्देश भी दिया जो मान्यवर साहब कांशीरामजी ने हमें दिया है ।वे कहते है ।
" तू धार बन , तू तलवार बन ,
तू चाकू बन, तू छुरी बन ..... !
पर तू किसीका चमचा मत बन .....! "
उस नए कर्यजर्ता को मेरी यह बात बहोत अछि लगी और उसने कहा ।
भलेही मै... चाकू , छुरी, तलवार नहीं बनुगा मगर " मै कभी किसीका चमचा नहीं बनूँगा ..!
मुझे बड़ा अच्छा लगा आपको ?????????
जयभीम .....! जय भारत....!!
पूछे ? मैंने मेरे उस मासूम को अपने हिसाब से सम्जानेकी कोशिश तो की । मगर उसका समाधान नहीं कर सका । अन्तमे मैंने उसे मान्यवर साहब कांशीरामजी इनके द्वारा लिखी हुई किताब .......
" चमचा युग " अंग्रेजी में "चमचा एज " यह किताब मैने उसे पढ़ने के लिए कहा ।और वह चला गया । फिर दो दिन बाद मुझे रास्ते में मिला । तब उसने बताया मुझे किताब पढने के लिए मिली नहीं । खैर मै तो उसे जरुर पढूगा । लेकिन कमसे कम मुझे थोडा समजाइए ...!
तब मैंने उसे कहा आपने कभी आपके रसोईघर(किचन रूम) में कभी किस तरह सब्जी बनाते यह देखा है क्या ? उसने कहा हाँ मैंने देखा है । लेकिन इतना गौर नहीं किया कभी ...!
तो मैंने कहा भाई बगैर चमचे की कोई भी सब्जी, तरकारी नहीं बनती है । लेकिन जिस चमचे के बगैर वह सब्जी नहीं बन सकी, उस चमचे को कभी यह पता नहीं चलता के सब्जी कैसे बनी
है ? वैसेही हमारे में कुछ चमचे ऐसे है ... जिन चमचो के वजहसे हमारा हित शत्रु तो सब कुछ हासिल कर लेता है। मगर काम पूरा होने के बाद उसे कोईभी कुछ नहीं पूछता है । ऐसे चमचा लोगोकी वजहसे हमारा मोवमेंट का सही काम नहीं होता है । हर समय बहुजन समाजके हर नेत्रुत्व के संघर्ष को रोकने के लिए हमारा दुश्मन उस नेतृत्व के सामने उसी के समाजके कुछ चमचोको तैयार करते है । और उसके उस काम को रोकनेकी कोशिश की जाती है ।ऐसे चमचे हर वक्त होते है । इसलिए मान्यवर साहब कांशीरामजी को यह किताब लिखनी पड़ी ।
चमचा लोगोकी वजहसे आज हमारी यह हालात हो गई है । इस लिए ।मैंने उसे समजाया उसे मैंने एक सन्देश भी दिया जो मान्यवर साहब कांशीरामजी ने हमें दिया है ।वे कहते है ।
" तू धार बन , तू तलवार बन ,
तू चाकू बन, तू छुरी बन ..... !
पर तू किसीका चमचा मत बन .....! "
उस नए कर्यजर्ता को मेरी यह बात बहोत अछि लगी और उसने कहा ।
भलेही मै... चाकू , छुरी, तलवार नहीं बनुगा मगर " मै कभी किसीका चमचा नहीं बनूँगा ..!
मुझे बड़ा अच्छा लगा आपको ?????????
जयभीम .....! जय भारत....!!
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